बिहार के 61 वर्षीय बुज़ुर्ग ने बनाई पानी पर चलने वाली साइकिल, गाँव में आई बाढ़ देखकर आया आईडिया

बिहार के 61 वर्षीय बुज़ुर्ग ने बनाई पानी पर चलने वाली साइकिल, गाँव में आई बाढ़ देखकर आया आईडिया

Motihari, Bihar: शिक्षा एक ऐसा शस्त्र है, जो ब्रम्हास्त्र की तरह कार्य करता है। हर किसी के जीवन में शिक्षा का बहुत महत्व होता है। लोग बेस्ट से बेस्ट एजुकेशन लेने के लिए घर से दूर परिवार से दूर पड़े रहते है। कुछ लोगो के जीवन में बेसिक शिक्षा का भी आभाव होता है।

शहरो में तो अच्छे स्कूल कॉलेज होते है, पर ग्रामीण इलाकों में स्कूलों का आभाव होता है ग्रामीण इलाके के बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से शहर की तरफ भागते है, कही साइकिल से, कही बसों से, परंतु साल के 365 दिन एक जैसे नहीं होता दिन बदलते है, मौसम बदलते है, कड़ी धूप और गर्मी में भी उनका संघर्ष का सिलसिला इसी तरह चलते रहता है और फिर बरसात में सबसे कठिन समय उनके सामने होता है।

नदी तालाबो को पार करके जाने वाले विद्यार्थियों के लिए यह सबसे कठिन दौर होता है। विद्यार्थी के साथ साथ गांव के लोग मजदूरी के लिये शहर जाते है। उनके लिए भी यह सबसे ज्यादा मुश्किल समय होता है। इन्ही सब परेशानियो को झेलने के बाद एक 61 वर्षीय बुजुर्ग ने एक पानी पर चलने वाली साइकिल का निर्माण किया, तो आइए हम जानते है कौन है, यह बुजुर्ग आदमी और किस तरह किया इस साइकिल का अविष्कार।

कौन है वो शख्स और उसे अपनी जमीन बेचने की आवश्कयता क्यों पड़ी

यह कहानी भारत के बिहार राज्य में रहने वाले एक ऐसे बुजुर्ग आदमी (Old Man Of Bihar) की है। जिनके जीवन का उद्देश्य ही आम लोगों की मदद करना है। मोहम्मद सैदुल्लाह (Mohammad Saidullah) जो सिर्फ 10 वी पास है, उनकी उम्र करीब 61 वर्ष है। वह पूरे देश में एक आविष्कारक (Innovator Mohammad Saidullah) के नाम से जाने जाते है।

विशेषतः उन्होंने पानी पर चलने वाली साइकिल का निर्माण कर भारत में एक इतिहास रच दिया है। लोग उनकी खूब तारीफे करते है, इस साइकिल की मदद से बढ़ प्रभावित क्षेत्रो के लोगो को बाढ़ से निपटने के लिए खूब मदद मिली।

वर्ष 2005 में इस इन्वेंशन के लिए उन्हें नेशनल ग्रासरूट इनोवेशन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था। अविष्कारक सैदुल्लाह वर्तमान समय में चारों तरफ़ घूमने वाला पंखा का अविष्कार करने में लगे है इस पंखे से चारों तरफ बैठे लोगों को बराबर बराबर हवा पहुचेगी। जिससे किसी को ज्यादा या कम हवा नहीं लगेगी।

मोहम्मद सैदुल्लाह हर समय अविष्कार की योजना बनाते रहते है। सैदुल्लाह पर अविष्कारों का जुनून इस कदर छाया था कि उन्होंने अविष्कारों के चलते अपनी 40 एकड़ जमीन भी बेच डाली। इन 61 सालों में उन्होंने पानी पर चलने वाली साइकिल, चाबी से चलने वाला टेबल फैन, चारा काटने की मशीन से चलने वाला मिनी वाटर पंप, मिनी ट्रैक्टर जैसे कई अविष्कार किये। उन्होंने सारे अविष्कार आम आदमी की मदद और उनकी जिंदगी को सरल बनाने के लिए बनाए।

बिहार में आई बाढ़ को देखकर पानी के ऊपर चलने वाली साइकिल बनाने का आईडिया आया

लगभग 45 साल पहले सन 1975 में बिहार राज्य में खूब अधिक वर्षा के कारण बाढ़ आ गई। यह बाढ़ करीब तीन हफ्तों तक रही। उस समय नदी पार करने के लिए उन्होंने एक नाव और शहर के लिए एक साइकिल का इस्तेमाल किया। फिर उनके दिमाग में यह विचार आया वह एक ऐसी साइकिल बना सकते है, जो जमीन पर तो चले, साथ ही में पानी पर भी चल सके (Bicycle That Rides On Water)।

फिर उन्होंने यह साइकिल बनाई और उसे टेस्ट करने के लिए गंगा नदी के पहलघाट से महेंद्रूघाट तक इस साइकिल को चलाई। इस साइकिल को बनाने में 6000 रुपये की लागत लगी और 3 दिन का समय लगा। इस साइकिल में रेक्टैंगुलर एयर फ्लोट लगाया गया था, जो साइकिल को तैरने में मदद करता है।

यह फ्लोट आगे और पीछे के पहियों में लगे है। जब साइकिल को जमीन पर चलाना हो तो फ्लोट को फोल्ड कर सकते है। बाढ़ में इस साइकिल से उन्होंने ढेरों लोगों की सहायता की।

पत्नी के नाम पर किया अविष्कारों का नामकरण

मोहम्मद सैदुल्लाह ने 1960 में नूरजहां से शादी की। और उनके 3 बच्चे हैं। दो बेटी और एक बेटा। सैदुल्लाह अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते है इसलिए वह हर अविष्कार का नाम उनकी पत्नी के नाम पर रखते है जैसे नूर मिनी वाटर पंप, नूर साइकिल, नूर इलेक्ट्रिक पावर हाउस, नूर वाटर पंप।

वे कहते है पत्नी के नाम पर किसी अविष्कार का नाम रखना उनके अंदर प्रेरणा भर देती है। वह बिहार राज्य के मोतिहारी जिले के पूर्वी चंपारण के एक गांव जटवा-जेनेवा में उनका बचपन बीता है। उनके पिता शेख इदरीस पेशे से किसान थे। सैदुल्लाह ने गजपुरा से दसवीं की पढ़ाई पूरी की परंतु कुछ कारणों के चलते वे आगे नहीं पढ़ पाए।

साइकिल पंचर का काम करते है

सैदुल्लाह अविष्कारों के साथ साथ साइकिल के पंचर लगाने का काम (Punchar Lagane Ka Kaam) भी करते हैं। मोहम्मद सैदुल्लाह चंपारण गांव में एक हजार रुपये किराये पर एक मकान में रहते हैं। सैदुल्लाह को पंचर लगाने के बाद जो कमाते है। उसे वह कुछ नया करने में प्रयोग करते हैं। उनकी बेटियां भी उनके जुनून को पहचानती है, इसलिए वे उनका सपोर्ट करती हैं। साथ में उनके खाने पीने का ख्याल रखती है।

सैदुल्लाह ने साइकिल से ही लंबी-लंबी दूरी तय की है। उनका कहना हैं कि कुछ ही समय पूर्व वे साइकिल (Bicyle) से चंपारण से भोपाल तक गए थे। अब वह साइकिल से ही हिमालय घूमना चाहते है। सैदुल्लाह अपनी आखरी साँस तक कुछ न कुछ क्रिएटिव करते रहना चाहते है।

 

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